who am I?
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सांझ आई,चुप हुए धरती गगन
नयन में गोधूलि के बादल उठे
बोझ से पलकें झपीं नम हो गईं
सांझ ने पूछा, उदासी किसलिए?
किंतु मेरे पास उत्तर नहीं!
रात आई, कालिमा घिरती गई
सघन तम में द्वार मन के खुल गए
दाह की चिंगारियां हंसने लगीं
रात ने पूछा, जलन यह किसलिए?
किंतु मेरे पास उत्तर नहीं!
नींद आई, चेतना सब मौन है
देह थक कर सो गई, पर प्राण को
स्वप्न की जादू भरी गालियां मिली
नींद ने पूछा, भुलावे किसलिये?
किंतु मेरे पास कुछ उत्तर नहीं!
प्रश्न तो बिखरे यहाँ हर ओर हैं
किंतु मेरे पास उत्तर नहीं!
. . . . दिनेश पाण्डेय।
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