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मेरी कविता का अर्थ न पूछो
उसमें अर्थ कहां है?
मेरे गीतों के बोल अनूठे, उनमें व्यर्थ न उलझो।
मेरी कविता के साथ बहो और मेरे गीतों में झूमों!
हो साहस तो करो नृत्य, अपने आपा को भूलो।
मेरी गजलें तो दीवानी हैं, इनमें क्या हासिल है?
न मानो तो मेरी गजलों के दीवानों से पूछो।
कहां-कहां तुम गागर लेकर जल भरने को घूमे!
पर रीती ही रही हमेशा, जब देखी आकर के घर में।
कितनी क्रांति हुई है जग में, कितने राज्य बने-मिटे हैं!
उनका कोई अर्थ बताओ? आखिर सब वे दफनाई हुई स्मृतियां हैं।
तुम संजीदे लोग गजब हो! खुद रोते, दुख सहते,
साथ कभी कुछ, क्या ले जा पाते?
बुद्धि की घानी में अब तक कितना क्या कुछ पेर चुके हो?
किंतु लगा क्या हाथ अभी तक, अनजाने का विस्तार कहां तक?
छोड़ो दिमाग की बात, यहां तो बात करो तुम दिल की।
मेरी कविता के साथ बहो और मेरे गीतों में झूमो!
तुम खुद मेरी गजल बनो! उसका अर्थ न पूछो।
. . . दिनेश पाण्डेय।
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